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Showing posts from June, 2015

तुम हो

तुम एक कैनवास हो। धूप और छांव की ब्रश तुमपर सही उतरती है। तुम खुले आसमान में ऊंची उड़ान भरती एक मादा शिकारी चील हो जो ज़मीन पर रंगती शिकार को अपनी चोंच में उठा लेती हो।  तुम एक सुवासित पुष्प हो जिसे सोच कर ही तुम्हारे आलिंगन में होने का एहसास होता है। तुम एक तुतलाती ऊंगली हो, जिसके पोर छूए जाने बाकी हैं तुम मेरे मरे मन की सर उठाती बात हो  तुम हो तो मैं यकीन की डाल पर बैठा कुछ कह पा रहा हूं तुम हो रानी,  तुम हो। तुम्हारे पीठ की धड़कन सुनता हूं तुम्हारे मुस्काने की खन-खन बुनता हूं मैं स्टेज पर लुढ़का हुआ शराब हूं  और तुम उसका रिवाइंड मोड की स्थिति मैं वर्तमान हूं तुम अपनी अतीत में ठहरी सौम्य मूरत तुम हो रानी,  तुम हो।  सेक्सोफोन पर की तैरती धुन तुम्हारा साथ, लम्हों की बाँट, छोटी छोटी बात हरेक उफनती सांस, हासिल जैसे पूरी कायनात आश्वस्ति कि तुम हो।  तुम हो रानी,  तुम हो।