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जो रिपोर्ट में नहीं है...



परसों तकरीबन सुबह पौने नौ बजे हमारे प्यार को गोली एकदम सामने से मारी गई।

वही वह रोज़ की तरह अपने घर साढ़े आठ में निकली थी। अपनी गली तक हस्बे मामूल अपने चोटी की दुम में उंगलियों से छल्ला बनाते आई। फिर जैसे ही उसकी गली, चौक के खुले सड़क पर आकर जुड़ी उसने झटके से अपने बालों को झटका देकर पीछे कर लिया जैसे घर की सरहद खत्म हुई। सब कुछ आदतन ही था। गुरूवार का दिन से लेकर उस दिन अपनी दीदी का पीला सूट पहने जाने वाले तक की बात भी, उसका फिटिंग ढ़ीला होना भी और एक आखिरी बार सबसे नज़र बचा दाईं ओर के ब्रा के स्ट्रेप्स को थोड़ा पीछे धकेलना भी। सबसे अंत में गर्दन नीचे कर एक नज़र अपने सीने पर भी डाली और सब कुछ ठीक रहते हुए भी अपना दुपट्टा ठीक किया।

हालांकि मैंने आत्महत्या की कोशिश की और उसमें असफल रहने के बाद मिल रहे उलाहने और हो तमाशे के बाद मेरा सिर घुटा हुआ है। मैं दिखने में पागल जरूर लग रहा होऊंगा लेकिन ईश्वर को हाजि़र-नाजि़र मानकर अपने पूरे होशो हवास में इस बात पर कायम हूं कि मैं शारीरिक रूप से न सही मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ हूं। और इस लिहाज़ से मेरी याददाश्त पर भरोसा किया जा सकता है।

तो आदतन ही हमारे प्यार ने अरोड़ा मोबाईल रिचार्ज सेंटर से दस रूपए का रिचार्ज करवाया। बमुश्किल इसमें बहुत अधिक तो चार मिनट लगे होंगे। फिर शर्मा स्वीट कोर्नर पर कोल्ड ड्रिंक पीते-पीते और रिक्शेवाले से किराया तय करते करते पौने नौ बजने को आया। जबसे मैं उसके प्रेम में गिरफ्तार हुआ हूं मेरी एक जोड़ी आंखें उसके घर के ठीक सामने वाले चैक पर किसी लैम्पपोस्ट पर लगी रहती है। एक स्थिर सीसीटीवी कैमरा। मैंने देखा कि प्यार ने पहले रिक्शे के नीचे लोहे के पायदान पर एक पैर रखा और दाहिना हाथ रिक्शे की सीट पर, ऐसा करते हुए वो थोड़ी झुक आई और दुपट्टे और सूट के बीच से उसके उभार का एक चैथाई हिस्सा अपने झांकने की दस्तक देता हुआ गुज़र गया। और वो जो लाॅकेट है ज़रा सा झूल गया। सुबह सुबह अपने बासी सब्जियों पर पानी के छींटे मारते सब्जी वाले एकदम से ताज़ादम हो गए।

बहुत अधिक तो रिक्शा मुहाने तक भी नहीं गया होगा कि बाईक पर सवार तीन लोग आए एकदम सामने से दो गोली उसके सीने में उतार दी। हालांकि वे कोई पेशेवर हत्यारे नहीं थे। वे उसे कम से सम चार से पांच गोली मारना चाहते थे लेकिर उस वक्त उनसे गोली ही नहीं। वे गोली उसके सिर में मारना चाहते थे लेकिन अंजाम देते देते उनका लक्ष्य पूरी तरह से भटक चुका था। गोली चलाने से पहले उन्होंने शोर शराबा भी बहुत किया। दरअसल उनसे गोली चल ही नहीं रही थी। बीच बाज़ार पिस्तौल निकालकर उस पर तान देने से ही उन्हें पसीना आने लगा था। गोली मारने में उन्हें काफी वक्त लग गया। वे पूरी तरह नौसिखिए थे। घोड़ा उनसे दब नहीं रहा था, वो एक दूसरे की हिम्मत ललकारने लगे। उसके साथी भी उटपटांग रूप से चीखने लगे। मुझे स्पष्ट लगा कि उनसे अब ट्रिगर नहीं दबेगा। वे होश खो बैठे थे। एक दूसरे को जोश और यकीन दिलाने के नाम पर वो खुद से धोखा करने लगे।

उनकी हालत बिस्तर पर उस आदमी सी हो आई जो खुद से ज्यादा वासना में घिरी औरत को सामने पाते हैं जिसकी उघड़ी, पसीने की चिकनाई लिए मजबूत बाहों का ज़ोर इतना तगड़ा होता है कि उनकी खुद की उस औरत की कमर पर पकड झूठी पड़ जाती है। उन्माद का ऐसा वलवला देख उनका हलक सूख जाता है। वे अंदर ही अंदर कहीं न कहीं इस सच से वाकिफ हो जाते हैं कि वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा और यह सिलसिला जल्दी ही खत्म हो जाने वाला है।

इसी तरह वे खुद को यकीन दिला रहे थे कि वे इस काम को अंजाम देने जा रहे हैं। इस तरह, कहने को यह कार्य सरे बाज़ार अंजाम दिया गया लेकिन इसे मंजिल तक पहुंचाने में वे जिस तरह के परेशानी और रूकावटों का सामना कर रहे थे, इस तरह से संपन्न किए गए इस घटना को मैं बेहद कायरतापूर्ण मानता हूं।

इसके बाद से ताकतवर लोग भागने लगे। वे बिलनुमा कई गलियों में समा गए। बाईक रूकती और वो कांपते लड़खड़ाते कदमों से यहां वहां टकराने लगे। यह दृश्य मेरे अंदर क्लोजअप में कैद हुआ है।

इसके बाद जो सबसे पहली चीज़ हुई इसके बाद कि कुछ देर के लिए इस काण्ड से आवाजें गायब हो गई। सामने सलोनी एसटीडी बूथ से एक फ्रेशर पत्रकार फोन कर अस्फुट स्वरों में कुछ बोलता सा दिखलाई पड़ता है। थोड़ी देर बाद लोकल केबल चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश होना शरू हुआ। इधर पीले सूट पर खून के निशान उभर आए थे। एकबारगी लगा उसने लाल फूल के डिजायन वाला पीला सूट पहना है। इसके बाद मेरी स्मृति गायब है। भरसक प्रयास करने पर भी उसके कैसेट पर ब्लैंक रील है। एक हिलता, झिलमिलाता पर्दा जैसे प्रसारण केंद्र से कुछ मिनटों के लिए कट गया नेटवर्क। लेकिन रील से कोई छेड़छाड़ नहीं, इंसर्ट किए कोई रशेज नहीं। गवाह: मानवीय सीमाएं (अंदर रोने की बहुत ईच्छा लेकिन बहादुरी की टकराहट, जिस तरफ से नहीं सोचा उसको याद दिलाया जाना और जो गूंगेपन को तोड़ा जाए तो जीभ का तालु से सट जाना, नतीजा - थोड़ा सा थूकमिश्रित लाड़) और रायफल लिए खड़ा समयरूपी मुस्तैद कमांडो।

हमारे प्यार के मरे हुए आज तीसरा दिन है। इस दौरान कुछ और हलचल भी हुई। जहां बाज़ार उस दिन डर में बंद रहे वहीं आज विरोध में बंद है। बीच वाले दिन यानि कल बाज़ार खुला रहा। मैं बीच बीच में चादर हटा कर उसका चेहरा देख लेता हूं। होंठ हल्के काले हो आए हैं। नाक में रूई के फाहे लगे हैं। लाकेट  उसके सोए हुए बदन में अपनी नींद में बेसुध लुढ़का पड़ा है। लाॅकेट की कोहनी, कमर, कंधा सब प्यार के गले के गड्ढ़ों में बैठ गए हैं। चेहरे पर एक असीम नींद की शांति है। जैसे तलाक वाले दिन शाम को अंधेरा हो जाने पर समुद्र तट पर नंगे पैर दूर तक निकल जाना। कानों को एक सांय सांय घेरे रहती है। मैं उसके जीवनकाल में उसे छूने को तरसता रहा। उसको छूने की मेरी लालसा अब भी बनी हुई है। मैं चाहता हूं कि भीड़ छंटे तो मैं उसे चेहरे के नीचे भी छू सकूं। एकबार मैंने उसके घुटने के ऊपर उसकी जांघ छूने की कोशिश भी की। पाया कि उसकी त्वचा की दीवार दरक रही है, चमड़े फट रहे हैं। जैसे आम के गूदे का पर्दा बनाया जाता है और वो तहो में जब भी फाड़ा जाता है वो बेतरतीब तरीके से अलग होती है। मुझे लगा कि शायद उसने अपने शरीर पर कोई क्रीम लगा रखी है जो अब सूख कर मैल के रूप में पपड़ी बन उधड़ रही है हालांकि उसका शरीर साबुत था लेकिन वह एक बड़े टोकने में रखी दूध लगी जिसमें नींबू डालकर उसे फाड़ा गया है।

मैं अभी यहीं बैठा हूं जहां गोली मारी गई थी। चाय की अंतिम घूंट भरते सोच रहा हूं कि अगर प्यार को यहां से नहीं उठाया जाता तो संभवत: चील, कौवे भी अब तक उसमें लगने लगते, दो दिनों बाद कीड़े भी और बारिश आती तो अंग का हर हिस्सा कमज़ोर होकर खुद कटने लगता। ऐसे में मैं उसके शरीर का एक टुकड़ा अपने साथ लेता जाता. उम्मीद है अभी सूरज ढलते ढलते सभी उसे जला देंगे। प्यार अगर मर जाए तो उसे जला देना चाहिए। तब तक रिपोर्ट भी आ जाएगी।

रिपोर्ट में यह सब बातें नहीं होंगी और अगर हुई तो मैं अपने कैसेट के काले-भूरे रील प्यार की तरह जला दूंगा और अबकी आत्महत्या.....

Comments

  1. और इसे पढ़ कर एक गहरी सीली उदासी से भर जाना...

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  2. आहत और हत, दोनों में एक अजब सी महक होती है, जलायेंगे तो खुशबू बन बिखर जायेगा। धरती में गाड़ेंगे तो आदम हव्वा वाला पेड़ बन उग आयेगा। मन में ही रखे रहिये, ताउम्र...

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  3. कितना कुछ मर जाता है आदमी के भीतर...रिपोर्ट में कहाँ जिक्र होता है। पर लगता है फिर भी कुछ बच गया है...

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  4. प्यार अगर मर जाए तो उसे जला देना चाहिए।...

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    1. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा....

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  5. सब कुछ हो जाने के बाद भी कुछ न होना बचा रहेगा

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