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Showing posts from May, 2011

सम्मन जारी किया गया

पुराने किले से सदा आती है। हवा उन दीवारों को छूते हुए आती है, किसी घुमावदार सुरंग तो तय करती। हवा इनमें जब भी घुसती या निकलती है मानो को काई अजगर पैठ या निकल रहा हो। बहुत सारा वज़न लिए। मुहाने पर निगरानी करता नीम का पेड़ बारिश का पानी पी कर मदमस्त हो चला है। तने ऐसे सूजे हैं जैसे किसी नींद में एक पुष्ठ छाती वाली  औरत लेटी हो जिसके बच्चे ने उसका ब्लाउज सरका दूध मन भर पिया हो।  xxxxx पीपल के पत्ते की तरह नज़र आते हैं कुछ लोग। अपनी जगह पर हिलते, हवा के चलने पर सरसराते। हवा कोई खबर लिए पेड़ में घुसती है और तने को पनघट मान सारे पत्ते एक दूसरे से सटकर वो खबर सुनने गुनने लगते हैं। ये बड़े क्षणिक पत्ते हैं। जीते जागते हुए भी एक मरियल हथेली से। अपनी जड़ों से तुरंत उखड़ आने वाले। एक दिखावटी टा टा करता, हिलता कोई हाथ। पलट कर देखो तो ऐसा ही लगे कि किसी अपने की तलाश में पराए घर में आया था। मेहमान होते हुए खुद खर्च किया और जाते वक्त पूरा घर लाज लिहाज के मारे हाथ रूख्स्त कर रहा हो।  xxxxx एक दयनीय सी स्थिति यह है कि हमारे चारो ओर दलदल है, पीठ के नीचे कांटे हैं, दिमाग में रेंगता कोई तलाश है और

अपने ही दिल से उठ्ठे, अपने ही दिल पर बरसे

जैसे खिजाब लगा कर तुम्हारे साथ इस उम्र में नाचने की गुज़ारिश की हो, एक लम्बा वक़्त बीता लेकिन हमारे बीच की खाई पर ये किसने कामगार लगाये ? हम कहने, दिखने और लगने को पति पत्नी हैं लेकिन तुम मुझसे बड़ी ही रह गयी, मैं खूँटी पर पर टंगा याचना ही करता रहा,  एक आत्मसम्मानी भुक्तभोगी जिसने  एक जीवन भर  आत्मसम्मान लटका दिया, विवाह से सत्रह साल होने को आये लेकिन रास्ते में करबद्ध खड़ा एक स्वागत कर्मी लगता हूँ, मुद्रा प्रणाम की है लेकिन उसी में सबको रास्ता भी दिखाना हो रहा है, तुम्हारी पेंचदार जुल्फें नसीब हैं लेकिन किराए का लगता है. चूम सकता हूँ लेकिन  पराया महसूस होता है. प्रतिक्रिया में कई बार वो कम्पन, वो सिसकारियां नहीं मिलती और तो और जब लम्बे प्रवास पर जाता हूँ तो आँखों में वो पुलकित और उमड़ता नेह भी नहीं दीखता.  एक ज़ालिम ज़माने से लड़ना क्या कम था, एक बे-इज्ज़त करता समाज क्या कम था जो पाँव तले नाव की पाट भी डगमगाती हुई लगती है ?  खुद से बहुत ऊब कर और ग्लानि में कभी गले भी लगती हो तो समझता हूं कि इस तरह मिलना एक आदरपूर्वक गले लगना है। हद है कि मैं बनावट हमेशा कठोर चीजों की ही समझ पाया।

अलखि, तुम्हारे अक्षर तो सुग्गा मैना के कौर से लगते हैं !

ज़मीन पर बोरा बिछा, अलखि उस पर पालथी मार कर बैठी है। दोपहर चार बजे का समय है। धूप छप्पर पर से वापस लौट रही है। आंगन के बाईं ओर गोशाला है और दाहिनी तरफ मिट्टी से घिरे किंतु थोड़ी ऊंचाई पर गिलावे पर ईंट से घेरा पूजा स्थान। इसपर गोबर से लिपाई की हुई है। बीच में हनुमान जी की ध्वजा है जो हर साल रामनवमी पर बदली जाती है। अलखि ऊपर देख कर सोचती है। अभी-अभी तक तो नया था क्योंकि चैत्र गुज़रे ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन रंग थोड़ा धूसर हो रहा है। एक बारिश गिरेगी ना, तो ध्वजा का लाल रंग और हल्का हो जाएगा। सफेद, उजला आकाश कितना सूना है। लगता है खराब हो गए कपास रखे हों।  बोरे पर पिचहत्तर फीसदी जगह घेर कर अलखि बैठी है। शेष पच्चीस प्रतिशत स्थान पर उसकी किताब कॉपी है। कॉपी क्या है एक नमूना है। अगर पलट कर देखी जाए तो मालूम होता है जैसे नितांत उलझन में लिखी गई हो। जैसे कोई जवान लड़का किसी किशोरी को प्रपोज़ कर रहा हो तो शर्म और उलझन में जो आरी तिरछी लकीरें खिचेंगी, उसकी पूरी कॉपी  कुछ ऐसी ही लगती है लेकिन ठहरिए जिसे आप इस कुंवारे और अनछुए रूपक द्वारा तौल रहे हैं अगर अलखि के पास यह उदाहरण रख दें तो उस

अमलतास, गुलमोहर और चाँद के देस में गुम एक जाति

ए तुम्हारे शहर में कोई और लड़की देखना अपने आप में क्या कुछ है। समझौता, मजबूरी, गुस्सा, बदला या कि तुमको फिर से तलाश करना। रिडिस्कवरी। दो गुदाज बाहें जब नंगी हथेलियों में थरथराए, तेज़ तेज़ सांसों का उतार चढ़ाव से ज्यादा हो, चढ़ाव इसलिए कि उतार एकाग्र हो, चढ़ाव इसलिए कि उतार में खत्म होना हो, चढ़ाव इसलिए कि उतार को जी सकें, प्यास बुझा सकें। बेकाबू धड़कनों का आरोह अवरोह किसी सनकी खूनी के तरह दलदल में चमकीले खंज़र लेकर उतर आए तो सीने पर उठता गिरता चांदी का चेन जिस जिस उलझन टकराता हो। इससे इतर तुम्हारे बगैर सोचना क्या है ? बिना गुलमोहर के पाटलीपुत्रा की कल्पना, बिना बेलपत्र महाशिवरात्रि का दिन या कि बिना भांग के होली। एल ठंढ़ी बहुत ठंढ़ी... कोई बर्फ का टुकड़ा स्मृति में फूटता, बारिश वाले दिन में ढ़लान भरी बिजली के तारों पर ढ़कलती चमकीली बूंद, कहीं पलते हुए जब हम बड़े होते हैं अमुक अमुक स्थान के कारण वो शहर हमें याद नहीं होता बल्कि अपने बेतरतीब ढलानों में भी सौंदर्य छिपाए होता है। अपना शहर कोई तीर्थ स्थल नहीं होता जो स्थान विशेष के कारण याद रहे। वहां विपरीत दिशा से आ रही आॅटो में दो