Skip to main content

चांदी के चमचे से चटनी चटायी

स्टेज सज-धज कर तैयार है। उस पर नीली-पीली लाल गुलाबी हर रंग की लाइटें पड़ रहीं हैं। प्रोग्राम शुरू होता है, एंकर अजीब सी शक्लो सूरत लिए और विचित्र सा पहनावा लिए अवतरित होता है। अपने आवाज़ में जोश भरने की कोिशश करते हुए वो गायकों से परिचय करवाता है। सामने न्यायाधीश बैठे हुए हैं हर गुरू के अपने चेले-चपाटी हैं। चेला आता है जी भर चिल्लाता है अर्थात् गाता है सभी गुरू सिरियस मूड में बैठे हैं जैसे अलग अलग खिड़की से उसे जांच रहे हों। चेले ने बड़े ध्यान से गाना चुना है वो जिसमें वो सबसे बेहतरीन नकल उतारता है। वो गाना जिसे सुनकर उसे घर वाले और यार दोस्त डिट्टो ओरिजनल गायक जैसा बताते हैं। चेला अंतिम सांस तक अपना बेस्ट देता है बीच-बीच में लड़कियों को प्रोपोज भी कर देता है और शुभचिंतकों को सांत्वना देता रहता है। पब्लिक मदहोश है वो हाथ हिलाते रहते हैं, चिल्लाते हैं, उन्होंने आज से पहले वैसा गाना नहीं सुना था ये भरम हर गाने पर होता है... चेला यह जान गया है कि वो जमाना गया जब शो जीतने के लिए क्लासिकल गाना पड़ता था जो जितना धा-धा- धिन्ना और मन्ना डे की तरह लागा चुनरी में दाग गा सकेगा वो विजेता होगा। गुरू भी बदल गए हैं जो जानते हैं गाना मतलब हुंकार मारना, ऐसा गाना जो आप कान बंद कर लें फिर भी वो चीख आपके कलेजे को हिला दे इससे इसलिए वो आतिफ और के के तक के बेहतरीन कलेक्शन पर हाथ आजमाते हैं।

लम्बी तान से उनकी तन्द्रा टूटती है। एंकर प्रगट होता है। तारीफ के हवाई पुल बांधता है। गायक विनम्र बनता है। गुरू खड़े होते हैं हर बार। गायक पैर छूता है। आखों में आंसू आते हैं। कैमरा वाले उसे क्लोज शॉट में कवर करते हैं। दशZक शो से और जुड़ जाते हैं। उन्हें अपने पर शंका होती है अच्छा तो नहीं गाया था लेकिन गुरू ने सर पर हाथ रखा है तो एस एम एस करना ही होगा। एंकर चिल्लाता है- एस एम एस करने का टाइम शुरू होता है अब। धमाकेदार बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ कैमरा लांग शॉट से क्लोज होता है सबके मोबाइल पर पब्लिक को एस एम एस करते हुए कवर करता है। आपके दिल में एक साथ जोश और हूक उठती है। आप तड़ाके से मोबाइल उठाते हैं। छक के 5 मैसेज दाग देते हैं। आपको चैन आना शुरू हो गया है। फिर 15 मिनट विज्ञापन आता है। आप उठ कर टॉयलेट जाते हैं। प्रेशर धीरे-धीरे कम होता है। आप भी अनायास गुनगुनाते लगते हैं। आपको भी अपने अंदर संभावना नज़र आने लगती है।

विज्ञापन खत्म होता है।

एंकर प्रगट होता है। स्टेज चमचमा रहा होता है, इसे देखकर आप कतई नहीं जान सकते कि भारत में कोई स्लम भी है। अलबत्ता बीच बीच में किसी चेले का संघशZ की कहानी इस तरह दिखाई जाएगी कि आप महसूस करेंगे कि अब इससे बड़ा दु:ख कोई और नहीं हो सकता। इधर आपके आंखों में आंसू आएंगे उधर विज्ञापनों का रेट बढ़ेगा।


आपका ध्यान फिर टूटता है किससे? एक सिलेब्रटी के आवाज़ से जो समंदर किनारे चलते हुए लम्बी - लम्बी हांक रहा होता है।

कैमरा वापस स्टेज की ओर रूख करता है।

एंकर फिर से चिल्लाता है। अबकी चेली की बारी है। चेली भी समझदार हो चुकी है वो जानती है कि प्रेम भरे समर्पित गीत गाने से काम नहीं बनता। एस एम एस पाने हैं तो कोई कामुक गीत उठाना होगा। वो रिंग - रिंग - रिंगा चुनती है। आततायी साज बजते हैं, चेली को साथ में कमर का ठुमका भी लगाना होता है। वक्त के साथ गायकों का कार्यक्षेत्र भी बढ़ गया है। ठुमरे के बीच हाय-उफ मार डाला से आप मदहोश हो जाते हैं। चेली इस वक्त चाहती है उसकी आवाज़ इस समय बिल्कुल ईला अरूण या सपना अवस्थी जैसी हो जाए। गीत खत्म होता है। जनता गश खाकर गिर पड़ते हैं। गुरू खड़ा होता है। चेली पैर छूती है। आंखें में आंसू आते हैं।

आप एस एम एस करते हैं।

एंकर चिल्लाता है - हालात कुछ ऐसे बने हैं कि दोनों टीमों से नंबर बराबर हो गए हैं। अब दोनों टीमों के गुरू भिड़ेंगे।

काला चश्मा लगाए मीका उठते हैं। जनता सुख से सराबोर हो जाती है। मीका रैप गाते हैं। फ्यूजन गाते हैं, गाने को मिक्स करके गाते हैं। आप हैरान हो जाते हैं कितनी प्रतिभा। वाह। वो अंत में आपको जो बोले सो निहाल का मंत्र सुनाकर यह बताना नहीं भूलते कि आप पंजाबी हो और सिंह इज किंग। यहां तो मियंा आप ये बात भूल ही बैठे थे जैसे ही आपको याद आता है। आप 10 एस एम एस और करते हैं। नाजो अंदाज से मीका अपने सीट पर विराजते हैं।

एंकर चिल्लाता है - अब आपके सामने आएंगे शंकर महादेवन

शंकर शुरू करते हैं। उन्हें भावुकता का लंबा अनुभव है। पर यहां सवाल जीत का है। वो आपकी दुखती रग छेड़ते हैं। वो शास्त्रीय के साथ आधुनिक गीत गाते हैं लेकिन फिर पैंतरा बदलते हुए मैं कभी बतलाता नहीं पर अंधेर से डरता हूं मैं मां भी गाते हैं। आप स्थिर हो जाते हैं एकदम स्तब्ध। "असंभव"

शेर आखिर हुंकार भरता है। अचानक सुनो गौर से दुनिया वालों वाला गीत दहाड़ते हैं। मीका ने आपको पंजाबी होने की याद दिलाई है तो शंकर आपको हिन्दुस्तानी होना सिखाते हैं। आपको अपनी भूल का एहसास होता है। आप आप अपने स्वार्थ को झाड़ते हैं और हिन्दुस्तानी वाला चोला धारण करते हैं। आप पल में हिंदुस्तानी हो जाते हैं। अब आप अपने कंधे पर तिरंगा पाते हैं। गर्व से आपकी छाती फूल गई है। आप बिस्तर पर ही जोश में आ जाते हैं।

आपके सारे इमोशंस कवर कर लिए गए हैं। अब इनका काम खत्म होता है। आप अब तक कुल 100 एस एम एस कर अपना पैसा खर्च कर चुके है। प्रोग्राम के अंत में शंकर विजेता घोशित किए जाते हैं। वो हवा में हाथ लहराते हैं आपको लगता है आपको हाय कर रहे हों। आपके दिल पर मरहम लगता है। आप सुकून महसूस करते हैं। वो कप उठाते हैं। आप अपनी सीट पर मुस्कुराते हैं।

एंकर हंसी मिलाकर चिल्लाता है, स्टेज पर लड़ने वाले फिर से साथ हो जाते हैं। संगीत की जय होती है। चौकोर रंगीन कागजों के टूकड़े उड़ते हैं। गुब्बारे फूटते हैं। वो विदा होते हैं आप चंद खुशनुमा क्षण सहेजे दूसरा प्रोग्राम देखने के लिए चैनल बदलते हैं।

Comments

  1. आज कल के आने वाले रियल्टी शो पर सही कलम चली है आपकी ...पर क्या वाकई एस एम् एस होते हैं इतने ..मुझे तो लगता है की अब पब्लिक भी सयानी हो गयी है ...एक साथ इतने इस तरह के प्रोग्राम हैं की अब बोरियत होने लगी है ...इस तरह के प्रोग्राम से ...पर अभी यह लोग तो हार नहीं मान रहे हैं ...

    सोचालय....सोच आज़ाद है कहीं भी आ -जा सकती है ..नाम ब्लॉग के लिखे के अनुरूप है

    ReplyDelete
  2. achha hai ,balkee kahun sachha hai !!
    bhawnaaon ko kaisey khareeda aur bechaa jata hai aajkal k reality show ya news channel bata saktey hain ..

    Kataaksh se shyad is consumerism k jamaneey ki aakhey hi khul jaayen :)

    yahan to mauka lage to ye sab milkar chaand bhi bech daaleyn ..

    ReplyDelete

Post a Comment

Post a 'Comment'

Popular posts from this blog

व्यावसायिक सिनेमा

   स्वतंत्रता आंदोलन के दौड में फिल्मकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर इस आंदोलन को समर्थन देने का प्रयास किया. तब तक देश में सिने दर्शकों का एक परिपक्व वर्ग तैयार हो चुका था. मनोरंजन और संगीत प्रधान फिल्मों के उस दौड में भी देशभक्ति पूर्ण सार्थक फिल्में बनीं.                         स्वतंत्रता के ठीक बाद फिल्मकारों की एक नयी पीढ़ी सामने आई. इसमें राजकपूर, गुरुदत्त, देवानंद, चेतन आनंद एक तरफ तो थे वी. शांताराम, विमल राय, सत्यजीत राय, मृणाल सेन और हृषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार और दूसरे फिल्मकारों का अपना नजरिया था. चेतन आनंद की ‘ नीचा नगर ’ , सत्यजीत राय की ‘ पथेर पांचाली ’ और राजकपूर की ‘ आवारा ’ जैसी फिल्मों की मार्फ़त अलग-अलग धाराएँ भारतीय सिनेमा को समृद्ध  करती रहीं . बंगाल का सिनेमा यथार्थ की धरती पर खड़ा था तो मुंबई और मद्रास का सीधे मनोरंजन प्रधान था. बॉक्स ऑफिस की सफलता मुंबई के फिल्मकारों का पहला ध्येय बना और इसी फेर में उन्होंने सपनों का एक नया संसार रच डाला. मनोरंजन प्रधान फिल्मों को व्यावसायिक सिनेमा के श्रेणी में रखा गया.             एक दीर्घकालीन संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता के अभ

समानांतर सिनेमा

            आज़ादी के बाद पचास और साथ के दशक में सिनेमा साफ़ तौर पर दो विपरीत धाराओं में बांटता चला गया. एक धारा वह थी जिसमें मुख्य तौर पर प्रधान सिनेमा को स्थान दिया गया. एक धारा वह थी जिसमें मुख्य तौर पर मनोरंजन प्रधान सिनेमा को स्थान दिया गया. इसे मुख्य धारा का सिनेमा कहा गया. दूसरी तरफ कुछ ऐसे फिल्मकार थे जो जिंदगी के यथार्थ को अपनी फिल्मों का विषय बनाते रहे. उनकी फिल्मों को सामानांतर सिनेमा का दर्जा दिया गया. प्रख्यात फिल्म विशेषज्ञ फिरोज रंगूनवाला के मुताबिक, “ अनुभूतिजन्य यथार्थ को सहज मानवीयता और प्रकट लचात्मकता के साथ रजत पथ पर रूपायित करने वाले निर्देशकों में विमलराय का नाम अग्रिम पंग्क्ति में है ” . युद्धोत्तर काल में नवयथार्थ से प्रेरित होकर उन्होंने दो बीघा ज़मीन का निर्माण किया, जिसने बेहद हलचल मचाई. बाद में उन्होंने ‘ बिराज बहू ’ , ‘ देवदास ’ , ‘ सुजाता ’ और ‘ बंदिनी ’ जैसी संवेदनशील फिल्में बनायीं . ‘ दो बीघा ज़मीन ’ को देख कर एक अमेरिकी आलोचक ने कहा था “ इस राष्ट्र का एक फिल्मकार अपने देश को आर्थिक विकास को इस क्रूर और निराश दृष्टि से देखता है, यह बड़ी अजीब बात

मूक सिनेमा का दौर

दादा साहब फालके की फिल्में की सफलता को देखकर कुछ अन्य रचनात्मक कलाकारों में भी हलचल मचने लगी थी। 1913 से 1918 तक फिल्म निर्माण सम्बंधी गतिविधियां   महाराष्ट्र   तक ही सीमित थी। इसी दौरान कलकत्ता में   हीरालाल सेन और जमशेद जी मदन   भी फिल्म निर्माण में सक्रिय हुए। फालके की फिल्में जमशेद जी मदन के स्वामित्व वाले सिनेमाघरों में   प्रदर्शित   होकर खूब कमाई कर रही थीं। इसलिए जमशेद जी मदन इस उधेड़बुन में थे कि किस प्रकार वे फिल्में बनाकर अपने ही थिएटरों में   प्रदर्शित   करें। 1919 में जमशेदजी मदन को कामयाबी मिली जब उनके द्वारा निर्मित और रूस्तमजी धेतीवाला द्वारा   निर्देशित   फिल्म ' बिल्म मंगल '   तैयार हुई। बंगाल की पूरी लम्बाई की इस पहली कथा फिल्म का पहला   प्रदर्शन   नवम्बर , 1919 में हुआ।   जमदेश जी मदन ( 1856-1923) को भारत में व्यावसायिक सिनेमा की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।   वे एलफिंस्टन नाटक मण्डली के नाटकों में अभिनय करते थे और बाद में उन्होंने सिनेमाघर निर्माण की तरफ रूख किया। 1907 में उन्होंने   कलकत्ता का पहला सिनेमाघर एलफिंस्टन पिक्चर पैलेस   बनाया। यह सिनेमाघर आ