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Showing posts from 2009

???...

सांसों के फनगट में, दुनिया के जमघट में, ये कौन सा राग-विहाग है। दो है चार है, साला चमाड़ है। उमड़ता जज्बात है, उगलता आग है। कैसा पक्षपात है! उमड़ता है, घुमड़ता है, बरसता है, और तौबा फिर भी यही ग़म के बैठा है कि साला ठीक से नहीं बरसा। वरना ये कील कहां चुभता रहता! कुछो बाकी रह गया है। दिन है तो रातो होगा, दु सौ सवालो होगा। ये जो रस्ता है, पता नहीं कैसा बस्ता है, सब कुछ कूल है फिर भी शुल है, जीवन है कि भूल है। सांसा आधा अंदर है उफनता समंदर है। भुल है, भुलैया है, जिंदगी की गलियां है। वक्त का पहिया है, बेलौस बहैया है। भेड़ बनाकर हांकता है। कमीने मुंह किसका ताकता है। भगाने पर भी नहीं भागता है। क्या कोई कपड़े रखवा लिया है ! देखो तो कैसा आग है। अबे आग है कि झाग है। जिलेबी रस्ता है, मीठा है, छोटा है। इन सब को ढ़ोता है। अयाल है-ख्याल है फैला जंजाल है, बोलना बवाल है तो जीना मुहाल है, चंद सवाल है पर कितना बदहाल है ! होता भी हूं, रोता भी हूं, करता भी हूं, मरता भी हूं। आदत नहीं बनती, सांस नहीं थमती। बिचार है कि सदी के गर्म कपड़े जैसा दोपहर में यहां-वहां उतारा हुआ है ! सबके साथ दिन काटा जा सकता है। प

Say-ओए-होए, होह-होए

1 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान कलाई पूरी तरह से घुमती है। घुटने को नीचे झुकाकर बल्लेबाज बाहर जाती हुई गेंद को स्वाक्यर कट लगाता है। विकेटकीपर सूने ग्ल्बस् को अपनी पेट की ओर खींचता है। दोनों पैर हवा में हैं और निगाहें घास पर फिसलती गेंद पर जो सीमा रेखा के बाहर जा रही है - चार रन। इस तरह, बल्ले का संपर्क छूटते ही गेंद मैदान पकड़ती और एक पर एक क्लासिकल किताबी चौका लगता जाता। `अमित का ऑफ साइड बहुत मजबूत है` अहाते से सनग्लासेज लगाए आती-जाती लड़कियां मुस्कान फेंकती है और मुलायम ताली बजाती हैं जिससे ताली की आवाज नहीं आती लेकिन वो उत्साहवर्धन और `बेटा तू लिस्ट में है` का भ्रम देती है। प्रत्युत्तर में बल्लेबाज भी पसीना पोंछने के बहाने हेलमेट उतारता है और मुस्कान बिखेरता है। मैदान के सारे क्षेत्ररक्षक पलटकर गैलरी की तरफ देखते हैं और ओवरकांफिडेट होकर अपना कॉलर चढ़ाते हुए अगली गेंद पर जान की जानी लगा देने वाली फििल्डंग का जज्बा लिए बल्लेबाज की तरफ बढ़ते हैं। उधर गेंदबाज़ अजीत अगरकर की तरह अगली गेंद फेंकने के लिए अपनी सांसें बटोर रहा है। बल्लेबाज फिर हेलमेट लगाता है, बल्ला हवा में घुमाता

सायलेंस..... एक्शन

"ऐसा क्यों होता है कि कभी मन कुछ नहीं करने का करता है, जिस चीज़ का इंतज़ार बरसों के करते रहते है वो मिल जाने पर उतनी ख़ुशी नहीं रहती?.. ऐसा क्यों होता है की कभी- कभी हर चीज़ से उब जाते है हम... बेवज़ह की थकन क्यों रहती है... मन बहलाने घर से निकलो तो क्यों सर दर्द वापस लिए लौटते हैं... क्यों ऐसा होता है की कोई कितना भी उकसाए उठकर चलने का हौसला नहीं होता... क्यों लगता है कभी-कभी की जो है वो बीता जा रहा है और उसका मुझे कोई मलाल नहीं है," ... अंजू यह दार्शनिकता भरी बात शून्य में निर्विकार, अपलक देखते कहती है... "तुमने कभी किसी को बर्बाद होते देखा है ? मैं खामोश हूँ... "जानते हो! मैं जिंदगी में अच्छा कर सकती थी पर एक मोड़ पर मैंने ऐसा महसूस किया जितना बेहतर मैं बर्बाद हो सकती हूँ शायद बन नहीं सकती... तुम जिंदगी के ऐसे ही मोड़ पर मिले; जहाँ मैंने तुम्हारा साथ सिर्फ इसलिए पड़का क्योंकि तुम बिछड़ने वालों के कतार में सबसे अव्वल नज़र आते हो..." " बह जाने दो ना यह दुनिया, भाड़ में जाए, एक पल में यह झंझट ख़तम... जिसे यह इत्मीन

डायरेक्टरर्स कट

/सीन-१/ सुनेहरा मौसम/दिन ब्लैक एंड व्हाइट शेड में आपकी गर्लफ्रेंड फरों वाला ओवरकोट पहने हुए है... गले में स्कार्फ, और घुटनों तक का बूट, उसके हाथ में आपके उधार के पैसों के लिया ऑर्किड का गुलदस्ता है.. क्योंकि उसे पसंद है... वो चार महीने बाद आपसे मिलने स्टेशन पर आ रही है... सिर्फ २० मिनट का वक़्त है, उस ट्रेन के उस स्टेशन विशेष पर रुकने का... आपने कई रातें जग कर, हर भावना में डूब कर, कभी पहाड़ पर, तो कभी साहिल पर बैठकर, कभी जगती आँखों से कोई सपना देखते हुए उसे हर मूड में कई लव लेटर्स लिक्खे हैं... इसमें से कई मीर के शेर है तो कुछ चुराए हुए दोस्तों के मोबाइल से फॉरवर्ड किया हुआ एस. एम. एस., अगर गर्लफ्रेंड कुछ ज्यादा हाई-टेक है तो आर्चीज़ के दूकान के शाम के रंगीन साये में एक दुसरे पर झुकते कपल्स के धुंधले चेहरे के बैकग्रऔंद में कुछ अंग्रेजी कोटेशन्स, आप चेप देते हैं... क्योंकि आपने तो सिर्फ प्यार किया! ऐसे उच्च ख्याल कहाँ आये आपने दिमाग में? ... हाँ कॉपीराइट आप ज़रूर लेते है , वाजिब भी है अपना पढाई छोड़ कर, अपना काम छोड़ कर, बायोलोजी के प्रैक्टिकल एक्साम के

ओवर आल वी वर्क फॉर हियुमिनिटी एंड व्हेन...

वो ७५ डिग्री की एंगल लिए लैपटॉप पर काम कर रही है... टांग पे टांग चढा कर बैठी है... बाल शैंपू किये हुए है और शहराना अंदाज़ में खुले हैं... जो दोनों रुखसारों को ढके हुए हैं... साथियों को बस बीच में उनकी नाक ही नज़र आती है... बालों को बीच-बीच में दिलफरेब झटका सा दे देती है... और मेरे पुरुष साथी निढाल हो जाते है... हाँ-हाँ नीचे से जींस, एक हाथ कटी हुई है... कैपरी कहते है शायद उसको... एक शोर्ट सा कुरता पहना है... कोई उत्तेजित करता सा इत्र लगा रखा है... उसने कभी बासी खाना नहीं खाया है, यह बात उसकी स्किन बोल रही है, पजेरो में बैठा ड्राईवर कुत्ते की तरेह चौकन्नी नींद सो रहा है... और वो लैपटॉप पर काम कर रही है... वो जब भी किसी की तरफ नज़र उठाती है, आँखों पर का स्क्वायर चश्मा चमक उठता है, ...फर्राटेदार, चमकदार अंग्रजी बोलती है... एक प्रेशर सा बनाती है अपने साथियों पर... सबसे पहले और सबसे ज्यादा बोलती है... वो चाहती है उसके मुंह से कमांड छुटते ही वो काम हो जाये, किसी चीज़ की फरमाइश करते ही उसके नाक पर ठोक दी जाये... वो पशेंसलेस है... वो योजनाएं बनाती ह

अथ स्वागतम

अपनी डफली... सबका राग! जर्नालिस्म में एक चीज़ पढ़ा था कि सूचना का पुनरूत्पादन होता है... मनोरंजन का भी गोया यही हाल है. हर चीज़ कहीं न कहीं पढ़ी लगती है, किसी न किसी सन्दर्भ से जुडी लगती है... ताक-झांक करने की मेरी पुरानी आदत है और आदतन हम अपनी डफली के बहाने गैरों के राग सुनाने बैठ गया... 'धुरंधरों के सामने इस ब्लॉग का कोई औचित्य नहीं है... यह बस उस गाने की तरह है- अ ने कहा ब्लॉग बनाइम, त बी न भी कहा ब्लॉग बनायेम... त हमहूँ कही हमहूँ ब्लॉग बनायेम... ब्लॉग बनायेंगे और छा जायेंगे... तो अब जब भी टेम मिलेगा अपन अपना हारमोनिया लेकर शुरू हो जायेगा... 'दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए... मुहब्बत भरी एक नज़र चाहिए... 'सच्ची साहिब हमको मुहब्बत भरी आपकी एक नज़र चाहिए' सलाम!